स्वतंत्रता से पूर्व भारत के विविध प्रांतों में जली पत्रकारिता की मशाल से अज्ञान, कुरितीयों का अंधेरा हट कर आज उन प्रांतों के विकास में पत्रकारिता अहम भूमिका अदा कर रही है. देश के प्रगत राज्य महाराष्ट्र में प्रतिभाशाली तथा बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी बालशास्त्री जांभेकर ने ६ जनवरी १८३२ को ‘दर्पण’ पत्रिका निकालकर मराठी पत्रकारिता की नीव रखी. इसलिये ,६ जनवरी ‘मराठी पत्रकारिता दिन’ के रूप में मनाया जाता है. इस उपलक्ष्य में मराठी पत्रकारिता के जनक के रुप में बालशास्त्री जांभेकर के कार्य पर प्रकाश डालता यह लेख.
आजसे ठीक दस साल बाद मराठी पत्रकारिता अपनी स्थापना के २०० साल पुरे करने जा रही है. प्रिंट से शुरु हुए मराठी पत्रकारिता के इस सफर ने दुनिया में हो रहे सभी बदलाओं को समेटकर इलेक्ट्रॉनिक,डिजीटल,सोशल मीडिया ऐसे सभी विधाओं में अपनी विशेष छवी बनायी है. वर्तमान में प्रगति के शिखर पर विराजित मराठी पत्रकारिता की बुनियाद रखने का दौर देखा जाए तो बालशास्त्री जांभेकरजी ने १९वी सदी में ब्रिटिश काल में ‘दर्पण पत्रिका’ शुरु की. रत्नागिरी जिले के पोंभुर्ले गाव में जन्मे जांभेकरजी ने पत्रिका शुरु करने से पूर्व अंग्रेजी व संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया. इसके साथ ही गणित एवं शास्त्र जैसे विषयों में भी हुकमत हासिल की. अनेक भारतीय तथा परदेशी भाषाओं का उन्होंने अभ्यास किया. इन योग्यताओं के साथ उन्होंने ‘बाँबे नेटिव्ह एज्युकेशन सोसायटी’के ‘नेटिव्ह सेक्रेटरी’, अक्कलकोट के युवराज के अध्यापक, एल्फिन्स्टन इन्स्टिट्यूट के पहले असिस्टंट प्रोफसर, अध्यापन प्रशाला (नॉर्मल स्कूल) के निदेशक, ‘जस्टिस ऑफ द पीस’जैसे पदों पर कार्य किया.
इसी कार्य को आगे ले जाते हुए कुल ३४ साल के जीवन काल में जांभेकरजी ने अपनी आयु के २० वे साल में ६ जनवरी १८३२ को मुंबई में ‘दर्पण पाक्षिक पत्रिका’ शुरु की. यह दौर जो की अंग्रजो के शासन का था ओर राष्ट्रभक्ति हेतु समाज को प्रबुध्द बनाने के लिए लोगों का हित तथा उन्हें शिक्षा देणे के महान उद्देशसे उन्होंने यह पत्रिका का कार्य आरंभ किया. इस पत्रिका के पहले संस्करण में ही उन्होंने कहा, ‘स्वदेश के लोगों में परदेश की शिक्षा प्रणाली का अधिक अध्ययन हो तथा इस देश का उत्थान व यहां के लोगों के कल्याण के बारे में बात करने के लिए मंच उपलब्ध कराने हेतु और लोगों को वर्तमान स्थिति का ज्ञान कराना उद्देश है. अंग्रेज हुकुमत को भारतियों की भावना पहुंचाने तथा यहां के लोगों को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त हो इस लिए उन्होंने इस पत्रिका को मराठी के साथ अंग्रेजी में भी प्रकाशित किया.
इस पत्रिका में उन्होंने अपने सहयोगी भाऊ महाजन के मदद से मराठी और स्वयं अंग्रेजी विभाग की जिम्मेदारी संभाली. खुद के पैसों से उन्होंने यह पत्रिका कुल आठ साल तक प्रकाशित की ओर इस पुरे कार्यकाल में उन्होंने विज्ञापन का सहारा नही लिया. उस जमाने में इस पत्रिका के ३०० सबस्क्रायबर थे.
इस पत्रिका में ग्रहों-तारोंसहित, इंग्लंड में हो रहे राजनितीक सुधार,महिला शिक्षा, जातीभेद का विरोध, विधवाओं के पुनर्विवाह, हिंदू , इसाई आदि धर्मो के बारे में व नाटय शाला को बढावा देने जैसे विषय सम्मिलीत हुआ करते थे. दर्पण अखबार से ज्यादा मतपत्रिका के रूप में लोकप्रिय हुयी.
उस दौर में शुरु हुए प्रिंटिंग का सही उपयोग कर उन्होंने समाज को जागरुक करने का कार्य किया. इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने शिक्षा तथा मनोरंजन का कार्य किया. यह पत्रिका अंग्रेजी शिक्षा का मराठी में ज्ञान देने का माध्यम साबित हुआ. सार्वजनिक जीवन में विचार मंथन करने के लिए अखबार को शक्ती मान कर इसका उपयोग उन्होंने समाज में बदलाव के लिए किया.
दर्पण को उन्होंने समाज परिवर्तन का शास्त्र तथा शस्त्र के रुप में प्रयोग किया.
२५ जून १८४० को दर्पण का आखरी संस्करण प्राकशित हुआ. इसके बाद १९४० में जांभेकरजी ने दिग्दर्शन मासिक पत्रिका शुरु की लेकिन दर्पण के जैसे पाठकों को वह भायी नही. यह ज्यादा लोकप्रिय न होने के कारणों का विचार किया जाए तो मासिक पत्रिका अनियमीत रुप से प्रकाशित होती रही. शास्त्रीय विषयों पर इस मासिक पत्रिका में चर्चा होती रही तथा विभिन्न विषयों का मंथन होना भी रहा. यह मासिक पत्रिका लगभग ४ साल प्रकाशित होती रही.
सामाजिक सहुकार को ध्यान में रखकर शुरु हुए दर्पण पत्रिकाने महाराष्ट्र को विचारों की पुंजी प्रदान की जिससे प्रगल्भ महाराष्ट्र निर्माण होने में मदद हुयी .इसी कारण ६ जनवरी को मराठी पत्रकारिता दिन के रुप में मनाया जाता है , जो की बहुत ही योग्य है.
रितेश भुयार,
उपसंपादक , महाराष्ट्र सूचना केंद्र, नई दिल्ली
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