Thursday, 6 October 2016

रंगमंच मेरे लिए माँ समान है : अभिनेता मनोज जोशी



नई दिल्ली,  :रंगमंच मेरे लिए माँ समान है, तथा संगीत नाटक अकादमी का प्राप्त पुरस्कार यह माँ सरस्वती का आशिर्वाद है. ऐसे भावना चाणक्य फेम चरित्र अभिनेता मनोज जोशी ने सूचना केंद्र मे आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त की.
        मंगलवार को राष्ट्रपती के करकमलोव्दारा श्री जोशी को नाटक क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. उनकी इस उपलब्धी पर सुचना केंद्र की ओर से मनोज जोशी का सत्कार समारोह आयोजित किया. उस वक्त श्री जोशी ने  भावना व्यक्त की. सुचना केंद्र के उपनिदेशक दयानंद कांबले ने श्री जोशी का शाल श्रीफल व पुष्ण गुच्छ देकर श्री जोशी को सम्मानित किया.
        इस  अवसर पर पत्रकारों से अनौपचारिक वार्तालाप हुआ. श्री जोशी ने कहा मै अंतीम साँसों तक नाटक क्षेत्र से जुड़ा रहुंगा. 1986 से मैंने नाटकों में काम करना शुरू किया. तब से लेकर आज तक मै काम कर रहा हु. इस सफर में चाणक्यइस नाटक का मंचन हो रहा है. यह नाटक प्रथमत: गुजराती भाषा में था. 1996 से इसका हिंदी में भी मंचन हो रहा है. अब तक नाटक के लगभग 996 प्रयोग हो चुके है. जल्द ही इस नाटक के  1000 प्रयोग हो जायेंगे. श्री जोशी ने मराठी, गुजराती तथा हिंदी भाषा में रंगमंच पर अभिनय किया है. साथ ही उन्होंने तीनों भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया है.
        पत्रकारोंव्दारा पुछे गये सवाल के जवाब में श्री जोशी ने कहा, कालीदास के काल से नाटक लिखे तथा मंचन किये जा रहे है. इस वजह से नाटक क्षेत्र का अपनी अंतिम सासें गिन रहा है. यह कहना गलत होगा. हा यह काह जा सकता है की दर्शकों की अभिरूची अधिक अच्छी हो गई है. जिस तरह का नाटक होता है. उसी तरह से उसे दर्शक मिलते है. मराठी, गुजराती, बंगाली या किसी भी अन्य प्रादेशिक भाषाओं के नाटकों की एक लंबी पंरपरा रही है. यहा नाटक जीवन का हिस्सा है. नाटकों मे लोक पंरपरा, लोक संस्कृती की झलक दिखती है.  कला-संस्कृती हमारे रग-रग मे दौड़ती है, जब तक मानव जीवन है तब तक नाटक जिवित रहेंगा. उन्होने कहा, नाटक यह विषय स्कुलों मे भी पढाया जाना चाहियें. इतिहास जैसे विषयों को अगर नाटयपुर्ण माध्यम से पढ़ाया जायेंगा तो विद्यार्थ्यी अधिक अभिरूची से पढ़ेगें. 
        संगीत नाटक अकादमी का यह पुरस्कार मिलने पर कैसा महसूस कर रहे है, इस सवाल के जवाब में श्री जोशी ने कहा, इस  पुरस्कार को रंगदेवता का प्रसाद मानता हूँ. पुरस्कार प्राप्त होना मतलब अब सही मायनों मे शुरूआत होना है. साथ ही जिम्मेदारी बढ़ गई है. यह पुरस्कार उन्होंने माँ-पिताजी के साथ ही इस अभिनय सफर में जो सहयोगी पहले दिन से साथ थे उन्हे समर्पित किया है.
        संगीत नाटक अकदामीव्दारा पुरस्कार प्राप्त कलाकारों को अपनी कला सादर करने का अवसर दिया जाता है. इसी के तहत  चाणक्य नाटक का मंचन राष्ट्रीय नाटय विद्यालय में 7 अक्तुबंर को यहा के अभिमंच सभागार में शाम 6.30 बजे होने जा रहा है.


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